आज से ठीक एक साल पहले 14 अप्रैल को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने
ईलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम की शुरुआत की थी। ई-नाम का उद्देश्य
पूरे देश को एक मंडी के तौर पर स्थापित करना है, जिसमें देश के किसी भी एक हिस्से
में बैठा कोई कारोबारी देश के किसी भी दूसरे हिस्से की मंडी में ले जाई जाने वाली
किसान की उपज पर बोली लगा सकता है, उसे खरीद सकता है।
मोदी सरकार की इस पहल को आजादी के बाद से कृषि
क्षेत्र में शुरू की गई सबसे बड़ी क्रांति माना जा सकता है क्योंकि इसकी सफलता से
किसानों की आय बढ़ाने की राह में सबसे बड़ी मुश्किल का समाधान हो जाएगा। आइए पहले
समझते हैं कि ई-नाम है क्या और यह कैसे काम करेगा और इसकी सफलता से क्या लक्ष्य
हासिल हो सकेंगे? दरअसल मौजूदा व्यवस्था के
तहत किसान अपने पास की (जिसकी दूरी 70-80 किलोमीटर तक भी हो सकती है) किसी भी मंडी
में अपनी फसल लेकर जाता है और वहां अपने कमीशन एजेंट या आढ़तिये के पास अपनी उपज
जमा कर देता है। इसके बाद आढ़तिया उसे नीलामी में उतारता है। मंडी के 4-5 कारोबार
घेरा बनाकर खड़े होते हैं और हाथों में कमोडिटी को उठाकर एक अंदाजे से बोली लगाते
हैं। फिर दो-तीन दूसरे कारोबारी उस पर क्रॉस बिड करते हैं और एक भाव तय कर सब
कारोबारी दूसरे किसान की कमोडिटी की तरफ बढ़ जाते हैं।
किसान के पास अधिकार होता
है कि वह चाहे तो बोली की कीमत पर अपना अनाज न बेचे। लेकिन यह केवल सैद्धांतिक
अधिकार है। व्यावहारिक तौर पर एक किसान के लिए वापस ट्रांसपोर्ट का खर्च देकर उपज
घर ले जाना और अगले दिन फिर मंडी आना संभव नहीं होता क्योंकि अगले दिन भी बोली
लगाने वाले वही कारोबार होते हैं और उपज की लागत इतनी बढ़ जाती है कि किसान को
भारी नुकसान होना तय हो जाता है।
इन्हीं कारणों से मंडियों में एक कहावत चलती है
कि यहां आने वाली उपज श्मशान जाने वाले मुर्दे की तरह है। एक बार जाने के बाद
मुर्दा घर नहीं लौटता, उसे जलाना या दफनाना ही होता है। लेकिन केंद्र सरकार ने जिस
ई-नाम पर एक साल पहले काम शुरू किया, उसमें 3 चरणों में काम होना है। पहले चरण
मंडी पर ऑक्शन की पद्धति को पूरी तरह ऑनलाइन किया जा रहा है। यानी किसान जब मंडी
में अपना माल लेकर आएगा, उसी समय उसे एक लॉट नंबर देकर उसके माल की एंट्री कर ली
जाती है। इसमें लॉट नंबर के साथ उसकी मात्रा भी शामिल होती है और यह पूरी सूचना कम्प्यूटर
स्क्रीन पर आ जाती है।
दोपहर में एक नियत समय पर जब ऑक्शन शुरू होता है, तब सभी
ट्रेडर सारे लॉट और उसकी मात्रा एक साथ स्क्रीन पर देखते हैं और उसी पर ऑक्शन होता
है। वहां आप भाव तो देख सकते हैं, लेकिन कौन वो बोलियां लगा रहा है, इसकी जानकारी
आपको नहीं मिलती। तो यह तो हुआ पहला चरण।
दूसरे चरण में एक राज्य की सभी मंडियों को एक
दूसरे से जोड़ा जाएगा और राज्य के किसी भी शहर में बैठा कारोबारी दूसरे किसी भी
शहर की मंडी में पहुंचे किसान के माल की बोली लगा सकेगा। और तीसरा और अंतिम चरण
होगा, जब किसी भी राज्य का कारोबारी किसी भी दूसरे राज्य की किसी भी मंडी में किसी
किसान का माल, उसकी मात्रा और भाव देख सकेगा और उस पर बोली लगा सकेगा।
सरकार ने पहले चरण में मार्च 2018 तक 585
मंडियों को ई-नाम के तहत लाने का फैसला किया है। 31 मार्च 2017 तक सरकार ने 400 मंडियों को इसके तहत लाने का
लक्ष्य रखा था, जबकि 10 अप्रैल तक 417 मंडियां इसमें शामिल हो गई हैं। इन मंडियों
में 39.5 लाख किसानों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है और इसके जरिए अब तक 15,000
करोड़ रुपये के 59 लाख टन कमोडिटी का कारोबार हो चुका है।
यानी सरकार पहले चरण के तहत पूरी तरह ट्रैक पर
है। लेकिन दूसरे और तीसरे चरण की राह आसान नहीं है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती मंडी
में आने वाले माल का गुणवत्ता मानक तय करने की है। दरअसल हर कमोडिटी की कीमत
निर्धारण में उसकी गुणवत्ता का सबसे बड़ा योगदान होता है। और इन मानकों में नमी,
खर-पतवार, टूटे दाने इत्यादि की प्रतिशतता देखी जाती है। अब एक ही मंडी में तो
कारोबारी माल हाथ में उठाकर देख लेता है और भाव लगा देता है, लेकिन दूर की मंडी के
माल का भाव वह तब तक नहीं लगा सकता, अगर स्क्रीन पर माल के साथ उसके गुणवत्ता
मानकों का विवरण न देख ले। और यह तब तक संभव नहीं है, जब तक इन सभी 585 मंडियों
में आने वाले हर किसान के सारे माल की असेईंग, ग्रेडिंग और क्लिनिंग न की जा सके।
यह आसान काम नहीं है।
इसी उद्देश्य से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-18 के लिए
पेश आम बजट में ई-नाम के तहत शामिल होने वाली हर मंडी के लिए मदद की रकम 30 लाख
रुपये से बढ़ाकर 75 लाख रुपये कर दी है। इनमें 30 लाख रुपये असेईंग के लिए जरूरी
कम्प्यूटर हार्डवेयर के लिए 40 लाख रुपये क्लीनिंग, ग्रेडिंग सुविधाएं विकसित करने
के लिए और 5 लाख रुपये मंडी के वेस्ट से कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए खर्च किए
जाएंगे। सभी मंडियों में यह सुविधा आने के बाद ही दूसरे और तीसरे चरण का काम पूरा
होगा।
एक बार यह हो जाने के बाद, किसानों को बाजार
सुनिश्चित करने और उन्हें अपने उपज का अच्छा भाव दिलाने के लिहाज से यह एक
क्रांतिकारी घटना होगी। इससे एक तरफ तो छोटी से छोटी जगह के किसानों को भी पूरे
देश के कारोबारियों की प्रतिस्पर्द्धी बोलियों का फायदा मिल सकेगा और दूसरी ओर
पूरे देश में मांग और आपूर्ति की तस्वीर रियल टाइम बेसिस पर शीशे की तरह साफ
रहेगी। इससे जहां एक ओर कालाबाजारी और जमाखोरी खत्म होगी, वहीं अनाज की कृत्रिम
कमी भी तैयार नहीं की जा सकेगी।
राज्य सरकारों के लिए ई-नाम में शामिल होने से
पहले अपने एपीएमसी एक्ट में संशोधन करना अनिवार्य शर्त है। फिलहाल सरकार ने 69
कमोडिटी को ई-नाम प्लेटफॉर्म पर शामिल किया है और 13 राज्यों ने एपीएमसी एक्ट में
जरूरी संशोधन कर लिया है। 12 अप्रैल को केंद्र और राज्यों के कृषि अधिकारियों के
बीच हुई बैठक में पश्चिम बंगाल और तामिलनाडु ने भी इस प्रक्रिया में जल्द से जल्द
शामिल होने की इच्छा जताई है। यानी कुल मिलाकर केंद्र सरकार अपने लक्ष्य की ओर
तेजी से बढ़ रही है और इसमें उसे मिलने वाली सफलता देश के किसानों, ग्रामीण
अर्थव्यवस्था और उपभोक्ताओं के लिए एक शानदार खबर होगी।